Tag: leaving home

  • ।अब।

    आज इस कमबख्त गूगल ने,
    सुबह सवेरे मन उदास कर दिया।

    पिछले साल के गुलमोहर के फूल दिखा दिए।
    तपे हुए नीले आसमान में, आग लगाते हुए लाल फूल।

    और फिर याद आए,
    पिछले घर के अगले आंगन में
    जो छूट गए,
    वह सुनहरी-चटक पीले,
    हमारे अमलतास के फूल।
    जैसे कोई मोती बिखेरते हुए, दिल खोल के,
    खिलखिला कर हंस रहा हो।

    सोलवें माले के चौथे कमरे में अब मन बेचैन हो चला है।
    आजकल हवा साफ है,
    अब उड़ना जरूरी है।
    अब ज़िद पर अड़ना है…
    मुझे फूलों से मिलने जाना है।

    पर ज़िद है तो क्यों ना बचपन वाली ज़िद की जाये?
    बेबाक होकर, अकड़ कर आज मांगा जाए।

    अब मुझे
    शिकारा में बैठ कर पंपोश के फूल छूने है।
    आंखे मीच कर यंबरज़ल के फूल, उनकी खुशबू से पहचाने है।

    बहुत देर हो गई
    अब घर जाना है।