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  • । ख्वाबों के टुकड़े ।

    आज सुबह फिर दो चार मिले,
    मेरे ख्वाबों के टुकड़े बार बार मिले।

    सालों से अपने दिल की तंग गलियां मायूस है,
    पर चमकते हुए शहर वालों की तरफ सब यार चले।

    सुना है इस शहर में जो दिखता है वो बिकता है,
    हम भी दिल खोल कर बैठे है,
    आज अपना भी कारोबार चले।

    अपनी दिल्ली की आब ओ हवा क्या कहिए या रब,
    यह बद मिज़ाज सी कोहरे की चादर;
    और तेरे कूचे में गुलज़ार खिले।

    दर ओ दीवार जलते थे रात भर,
    अंगारे अभी सुलगते होंगे।
    छांटेंगे हम इत्मीना से,
    शायद वो खोया हुआ करार मिले।

    आज सुबह फिर दो चार मिले,
    मेरे ख्वाबों के टुकड़े बार बार मिले।

    भावना
    22-11-2024